दे पिला ये सुर्ख से रंग ,शाम के भर जाम में
वो न फिर से माँग बैठे , खूने दिल पैगाम में
जिन्दगी का हॆ वजू, जीने के इस अंदाज में
इक शमां बन कर जले, गर दूसरो की राह में
साज कोई लय नहीं हैं ,लय बसा हर साज में
हर नई सुबहो छिपी हैं ,इक गुजरती रात में
हैं मुझे भी देखना, अब इस सितम के दौर में
इस गमें-सागर में मिलता हैं सुकूँ किस छोर में
इम्तिहां की इन्तिहां के, हर हदों के पार में
मैं मिलूंगा फिर से उनसे, बस इसी हालत में
vikram
बुधवार, 20 अगस्त 2008
दे पिला ये सुर्ख से रंग .............
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