सोमवार, 24 मार्च 2008

बहुत खोया हैं मैने, जिन्दगी को जिन्दगी के वास्ते

बहुत खोया हैं मैने, जिन्दगी को जिन्दगी के वास्ते

मगर पाया नहीं कोई खुशी इस जिन्दगी के वास्ते

भटकता फिर रहा हूँ मैं, यहाँ रिश्तो के जंगल में

न इसको पा सका अब तक,इस दुनिया के समुन्दर में

मेरे हालत पहले से भी बदतर हों गये यारा

बहुत अरसा लगेगा रात से अब सहर होने में

बहुत रोया यहाँ मैं ,आदमी बन आदमी के वास्ते

मगर पाया नहीं ..........................................

हैं काफी वक्त खोया बुत यहाँ अपना बनाने में

नजर में भा सका न ये किसी के इस जमाने में

किया जज्बात के बाजार में सौदा बहुत यारा

कहीं पे रहा गयी कोई कमी इसको सजाने में

बहुत तडफा यहाँ इन्सान बन इंसानियत के वास्ते

मगर पाया नहीं ....................................................

विक्रम

शुक्रवार, 21 मार्च 2008

होली की हार्दिक शुभकामनायें

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें

vikram

बुधवार, 19 मार्च 2008

ख्वाब सी यह जिन्दगी ,इस जिन्दगी से क्याँ गिला

ख्वाब सी यह जिन्दगी ,इस जिन्दगी से क्याँ गिला
क्या मिला रोया यहाँ , और जब हँसा तो क्याँ मिला

जिदगी चलती कहाँ हैं , हसरतों के रास्ते
मौत से इसके यहाँ, कितने करीबी वास्ते
अब यहाँ शिकवा करें क्यूँ ,अपनी ही भूलो से हम
इक अजब से दास्तां लिख दी हैं हमने बा कलम

रो रहें हैं आशियां ,ऐसा दिया उनको शिला
ख्वाब ................................................

महफिलों की याद , तन्हाई में आती हैं सदा
प्यार का एहसास होता, होते हैं जब दिल जुदा
अपनी आवारगी पे रोती हैं, यहाँ देखो फिजा
बरना क्या इस बागवां को , जीत लेती यह खिजां
जिन्दगी को बाट टुकडो , मे सदा खुद को छला
ख्वाब..................................................................

vikram

बुधवार, 12 मार्च 2008

थे जब तक दिल मे तुम मेरे...............

थे जब तक दिल मे तुम मेरे, न दर्दो के ये साये थे
गुलों में खार होते हैं, न तब तक जान पाये थे


मुझे न चाहने का गम , नही इतना सताता हॆ
रकीबों से गले लगना,यही पल-पल रुलाता हॆ


तडफ कर हम इधर रोये, उधर तुम मुस्कुराये थे
गुलो में खार होते हैं, न तब तक जान पाये थे


कोई शिकवा नही फिर भी, मुझे इतना ही कहना हॆ
दुआ के हाथ कातिल थे ,यही गम मुझको सहना हॆ


गमों से इश्क करने की , नही हम सोच पाये थे
गुलो में खार होते हैं , न तब तक जान पाये थे


विक्रम





मेरी आकांक्षाओं का .....................

मेरी आकांक्षाओ का समुद्र

स्पंदन हीन शांत हैं

गतिहीनता के बोध से ग्रसित

न जाने क्यूँ

कुछ भयाक्रांत हैं

उसमे असीम गहराई हें

पर मैं

नहीं देख पाता हूँ ,अपना प्रतिविम्ब

हां

जब झाकता हूँ

देखता हूँ गहरा अधेरा

मैं पूर्णमासी का भी करता हूँ इंतजार

देख सकू

ज्वार-भाटे से उठा उन्मुक्त यौवन

पर मैं निराश हूँ

मेरे आकाश में कोई चांद सूरज नहीं

कभी सोचता हूँ

जैसा भी हूँ अच्छा हूँ

देखो

जिनके चांद सूरज चमकते हैं

वे भी

अनियंत्रित जार-भाटे के शिकार

गतिवान होने के बाद भी दिशाहीन

अपने ही तटिबन्ध को कर क्षतिग्रस्त

हों गये हैं पाप-बोध से ग्रसित

नहीं मैं ऐसा नहीं

मैं ऐसा नहीं

...........

विक्रम

रविवार, 9 मार्च 2008

नहीं क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

नही क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

आशा के विस्तृत प्रदेश में

उत्साहित ह्रद भरा जोश में

जीवन समर सरल हों जायें , यदि प्रिय धर लो नेह हमारे

नहीं क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

उर भय ग्रसित न प्रणय हमारे

फिर क्यूँ चिंतित नयन तुम्हारे

कंचन बदन कनक मद लेकर, आई हों मन द्वार हमारे

नहीं क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

चिर आपेक्षित मिलन हमारा

काल-चक्र भी हमसे हारा

जग जीवन के सभी नियंत्रण, तोड़ बढे पग आज हमारे

नहीं क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

vikram

एक मुट्ठी दायरे में ..................

एक मुट्ठी दायरे में ,हैं जो सिमटी जिंदगानी

ख्वाब हैं कितने बड़े,कितनी बड़ी इसकी कहानी

हैं कहीं ममता की मूरत, तो कहीं नफरत की आंधी

रूप हैं कितने ही इसके, जा नहीं सकती ये जानी

तोड़ती हर दायरे, आती हैं इसपे जब जवानी

एक .........................................................

हैं वफा और बेवफा भी ,प्रीत भी हैं पीर भी

ये कहीं मजनू बने तो, ये कहीं पे हीर भी

ये कबीरा ये फकीरा, ये बने मीरा दिवानी

एक .....................................................

हैं कहाँ इसका ठिकाना, आज तक कोई न जाना

पीर संतो ने भी इसको, बस खुदा का नूर माना
हैं सुखनवर के लिये,उल्फत भरी कोई कहानी

एक ...........................................................

विक्रम

शनिवार, 8 मार्च 2008

जीवन की जब शाम यहां पर आयेगी

जीवन की जब शाम यहां पर आयेगी

आ कितना आराम मुझे दी जायेगी

तन्हाई से लड़ते- लड़ते थक जायेगें

जीवन का यह बोझ नहीं ढो पायेगें

ऐसे में वो चुपके से आ जायेगी

आ...........................................

कोई शिकवे कोई न गिले रह जायेगें

बीते कल के अपने बन सपने आयेगें

इन सपनों से वो दूर मुझे ले जायेगी

आ..............................................

बैरन निदिया भी रोज मुझे तरसाती हैं

रह कर के भी पास नहीं ये आती हैं

उसके आते ही आकर मुझे सुलायेगी

आ......................................................

vikram

गीत नया गायेगे..................

न तू न मैं न ये न वो ,संग चलकर

गीत नया गायेगे , हम आज मिलकर

बहार की पुकार हॆ, आजा सथिया

प्यार के लिये ही,मैने दिल दिया लिया

तू से मैं, मैं से तू , आज बन कर

गीत............................................

आज देखो फिर से राझा-हीर मिल गये

नयन के रास्ते दिलो के पीर बह गये

रब किसी को भी जुदा यहाँ न आज कर

गीत................................................

गमों की रात में खुशी का चांद आ गया

फूल बन के देखो कैसे खार खिल गया

दिल से दिल की बात कर आज खुलकर

गीत...................................................

हरी-भरी वादियों में ये खिला चमन

प्यार के लिये मुझे मिला हॆ इक सनम

जिन्दगी को जिन्दगी के नाम लिखकर

गीत....................................................

आइये आसुओं से समुंदर रचे.....

उम्र क्या चीज हैं,रश्म क्या चीज हैं

आशिकी दो दिलो की बड़ी चीज हैं

आइये आसुओं से समुंदर रचें

इश्क में जो करें वो बड़ी चीज हैं

क्यूँ ऐ नजरे खफा मुझसे रहने लगीं

चुपके चुपके मेरी राह ताकने लगीं

आइये इक कशिश बनके दिल मे रहें

दर्दे दिल की तडफ भी बडी चीज हॆ

हम नजर जो हुये,हमसफर न हुये

सौदे दिल के किये फिर मुकर भी गये

राहे-उल्फत मे जिनके कदम न बढे

वो ये कहते हैं दिल भी अजब चीज हैं

अब ये वादे वफा के न रश्मी रहें

दिल यहाँ जो कहें हम वही अब करें

देखिये जिन्दगी ये जफा भी करे

उससे पहले संभलना बडी चीज हैं

विक्रम

चलो आज कुछ नया करें हम

चलो आज कुछ नया करे हम

इसी पुराने तन को धर कर
सडे घुने से मन को लेकर

जीवन की अन्तिम बेला मे,आज नया प्रस्थान करे हम

चलो आज कुछ नया करे हम

वही शशंकित आशाये धर
घने पराये पन से डर कर

सासों की इस पगडन्डी से,हट कर कोई राह चुने हम

चलो आज कुछ नया करे हम

तृप्ति कहाँ होती मन गागर
सुख के चाह रही वो सागर

छोड़ इसे इस ही पनघट पर,मरुथल में विश्राम करें हम

चलो आज कुछ नया करें हम

vikram

गुरुवार, 6 मार्च 2008

जीवन का सफर चलता ही रहें चलना हैं इसका काम

जीवन का सफर चलता ही रहें ,चलना हैं इसका काम

कहीं तेरे नाम ,कहीं मेरे नाम ,कहीं और किसी के नाम

हर राही की अपनी राहे, हैं अपनी अलग पहचान

मंजिल अपनी ख़ुद ही चुनते, पर डगर बडी अनजान

खो जाती सारी पहचाने, जो किया कहीं विश्राम

कहीं तेरे नाम ,कहीं मेरे नाम ,कहीं और किसी के नाम

इन राहों में मिलते रहते,कुछ अपने कुछ अनजान

हर राही के आखों में सजे कुछ सपने कुछ अरमान

सपनों से सजी इन राहों में, कहीं सुबह हुयी कहीं शाम

कहीं तेरे नाम कहीं मेरे नाम कहीं और किसी के नाम

vikram


मृग चितवन मे बंधा बंधा सा

मृग चितवन में बंधा बंधा सा

पास नहीं हों मेरे फिर भी ,नयन तुम्हे ही ढूँढ़ रहें हैं

जाने कौन दिशा में तेरी पायल के स्वर गूँज रहें हैं

जागी भूली यादें तेरी

पर मन मेरा डरा-डरा सा

कही पपीहे के स्वर सुनके,जाग पड़े न दर्द हमारे

सच्चाई से मन डरता हैं, पर वह बैठी बाँह पसारे

दो पल मधुर मिलन के

आज लगे तन थका-थका सा

कैसे कहें कौन हों मेरे , सारे सपने टूट गये हें
प्रेम भरे रिश्तो के बन्धन,जाने कैसे छूट गये हैं

कितनी मिली खुशी थी मुझको

पर सब लगता मरा-मरा सा

विक्रम

ऎ काश ऎसा होता यहां पर..........

ऎ काश ऐसा होता यहाँ पर, तुम जो ठहर जाते थोड़ा
पाकर खुशी तब दिल ये हमारा,यूँ ही मचल जाता थोड़ा


नयनों के सपने,दिल के दरीचे पे ,आ-आ के जब हैं मचलते
हम भी तुम्हारी यादों में खोकर, तब हैं ज़रा सा बहकते


ऎ नर्गिसी रूप तेरा महक कर,घुलता फिजाओं में थोड़ा
पाकर खुशी तब दिल ये हमारा,यूँ ही मचल जाता थोड़ा


दिल की जुबां से मॆने कही भी,तुमको हॆ जब-जब पुकारा

ऎसा लगा तब सीने मे मेरे ,धडका कही दिल तुम्हारा


नयनों की मदिरा से तेरे बहक कर,ये वक्त थम जाता थोड़ा
पाकर खुशी तब दिल ये हमारा,यूँ ही मचल जाता थोड़ा


vikram

पथिक .........

पथिक

जीवन यात्रा के यौवन काल में

अर्ध-सत्य रिश्तो से उपजे ये प्रश्न

हैं मात्र भावनाओं संस्कारो के बीच के द्वन्द

यह मत भूलो

न तुम पतित हों ,न पतित पावन

तुम पथिक हों

जिसे खोजना हैं

जीवन के कितने ही अनसुलझे, प्रश्नों के उत्तर

देना हैं नये विचारों को जन्म

पूर्व निर्मित

मान्यताओं ,मर्यादाओं के वीच

पहचानना हॆ सत्य

सत्य के असंख्य मुखौटो के बीच

तुम्हारी ये कोशिशे व संघर्ष होगे

माइने जीवन के

vikram

बुधवार, 5 मार्च 2008

अल्ला मेघ दे...........

अल्ला मेघ दे पानी दे, जीवन कर धानी ,मौला मेघ दे
इक जिन्दगानी दे कोई कहानी दे,कोई कहानी,अल्ला मेघ दे
नयनों के कोर सूखे
आँचल के छोर सूखे
मन के चकोर छूटे

आशा की डोर टूटे

मन को पीर दे नीर दे, नीर दो खारे,अल्ला मेघ दे

तरुवर के पात जैसे
मेरे हैं गात वॆसे

कोई पतझड आये

जीवन निधि ले न जाये
इसको प्यास दे आश दे ,बोल दो प्यारे, अल्ला मेघ दे

पनघट मे शाम जायें

फिर भी कोई न आये

पंछी बिन गीत गाये

मेरे अंगना से जाये

इसको रीत दे सीख दे ,गीत दे प्यारे,अल्ला मेघ दे

ममता के दे वो साये

दिल में जो आश जगाये

नन्ही किलकारी भाये

गोदी छुप मुझे सताये

ऎसी हूक दे कूक दे पीक कुंआरे, अल्ला मेघ दे

vikram

मंगलवार, 4 मार्च 2008

बस हम वफाये इश्क में ..........

बस हम वफाये-इश्क में,मिटते चले गये

और वो जफाये-राह में, चलते चले गये

मैं न नसीब उनका, कभी बन सका यहाँ

वे ही नसीबे-गम मुझे देकर चले गये

इस इश्के मय-कशी के जुनू में मिला ही क्याँ

लवरेज वो पैमाने भी,छूटे छलक गये

अब तो दुआये बोल भी मिलते नहीं यहाँ

कुछ ऐसी बद्दुआ मुझे देकर चले गये

उल्फत में उनके यारो फंना भी करू तो क्या

दामन से मेरे दिल को जुदा कर चले गये

विक्रम

डूबा सूरज साँझ हों गयी

डूबा सूरज साँझ हों गई

पंक्षी नीडो में जा पहुचे

सुन बच्चो की ची ची चे चे

वे भूले दिन के कष्ट सभी , यह स्वर लहरी सुख धाम दे गयी

डूबा सूरज साँझ हों गयी

जो पंथी राहों में होगे

जल्दी जल्दी चलते होगे

प्रिय जन चिंतित हों जायेगे , यदि पथ में उनको रात हों गयी

डूबा सूरज साँझ हों गयी

हर दिन जब ये पल आता हैं

मन में जगती इक आशा हैं

शायद कोई मुझसे कह दे, घर आओ देखो शाम हों गयी

डूबा सूरज साँझ हों गयी

vikram

सोमवार, 3 मार्च 2008

द्वन्द एक चल रहा..........

द्वन्द एक चल रहा रहा
रक्त नीर बह रहा
कर्म के कराहने से
इक दाधीच ढह रहा
क्यूँ अनंत हों नये,छोड़ कर चले गये
एक बूंद नीर की , दो कली गुलाब की
देह-द्वीप जल रहा
मोह फिर सिमट रहा
कृष्ण-शंख नाद से
पार्थ हैं सहम रहा
प्रश्न बन चले गये, नेह से बिछुड़ गये
एक बूंद नीर की ,दो कली गुलाब की
काल-खंड थम रहा
टूट कर बिखर रहा
इस गगन विशाल से
प्रश्न कौन कर रहा
नम नयन छलक गये, भीरू-भीत बन गये
एक बूंद नीर की, दो कली गुलाब की
तम अमिट बना रहा
लेख इक मिटा रहा
एक स्याह बूंद से
चित्र फिर बना रहा
तुम कही ठहर गये, नीड से बिछुड़ गए
एक बूंद नीर की दो कली गुलाब की
विधि-विधान रच रहा
मुक्ति द्वार गढ़ रहा
आस्था के द्वार से

लौट कौन आ रहा
सुन्दरम सब शिव हुये, सत्य आहत हुये
एक बूंद नीर की , दो कली गुलाब की
विक्रम[छोटे भ्राता स्वर्गीय राधवेन्द्र की याद में ]

प्यार को नाम......

प्यार को नाम तो सौदाई दिया करता हैं

यह तो बन नूर हर इक दिल में रहा करता हैं

इसको रिश्तो की जजीरो में न बाँधा कीजै

यह वो जज्बा हैं जिसे रूह से समझा कीजै

अश्क बनके भी यह आखों में रहा करता हैं

प्यार को नाम ........................................

यह वो मय हैं जिसे दिल ही में उतारा कीजै

पी भी आखों से पिलाया भी उसी से कीजै

दर्द बनके यह नशा दिल में रहा करता हैं

प्यार को नाम .....................................

तख्तो -ताजो में इसे आप न खोजा कीजै

खून के कतरो मे इसको तो तलाशा कीजै

अपनी कुर्बानी पे यह फक्र किया करता हैं

प्यार को नाम.......................................

विक्रम [८। ७। १९ ९४,की रचना ]

शनिवार, 1 मार्च 2008

दे पिला ये सुर्ख से रंग .............

दे पिला ये सुर्ख से रंग ,शाम के भर जाम में

वो न फिर से माँग बैठे , खूने दिल पैगाम में

जिन्दगी का हॆ वजू, जीने के इस अंदाज में

इक शमां बन कर जले, गर दूसरो की राह में

साज कोई लय नहीं हैं ,लय बसा हर साज में

हर नई सुबहो छिपी हैं ,इक गुजरती रात में

हैं मुझे भी देखना, अब इस सितम के दौर में

इस गमें-सागर में मिलता हैं सुकूँ किस छोर में

इम्तिहां की इन्तिहां के, हर हदों के पार में

मैं मिलूंगा फिर से उनसे, बस इसी हालत में

vikram

कवि सुन तू मेरे मन के द्वन्द

कवि सुन तू मेरे मन के द्वन्द

इक कली आज मुरझाई

उस पर बहार न आई

फेका उसको पथ-रज में

रच दे उस पे भी एक छंद

कवि ...........................

मधु-ॠतु था जीवन मेरा

हर पल था नया सवेरा

वे प्रेम पुष्प ले आये

बाजे थे मेरे मन मृदंग


कवि ........................

मन मीत मेरा क्या रूठा

हर चित्र अधूरा छूटा

न माने मृदु मनुहारो से

क्यू वीणा के स्वर हुये मंद

कवि ...................................

विक्रम