रविवार, 15 जून 2008

जीवन जीना ही पडता हैं ............



जीवन जीना ही पड़ता हैं


छल गया कोई, अपना बन के


वह चला गया, सपना बन के


रिश्तो की भूल-भुलैया में, चल कर जीना ही पड़ता हैं


जीवन जीना ही पड़ता हैं


आशा के पंख ,लगा करके


कुछ हद तक सच, झुठला करके


गैरों पे मढ़ कर दोष यहाँ, ख़ुद को छलना भी पड़ता हैं


जीवन जीना ही पड़ता हैं


इस भरी दुपहरी से ,तप के


पल शांत निशा के, पा करके


तृष्णा से उपजे घावों को, सहला कर रोना पड़ता हैं


विक्रम

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