बुधवार, 18 जून 2008

ओ मधुमास मेरे जीवन के ......


ओ मधुमास मेरे जीवन के

क्यू इतने सकुचे सकुचे हो
शिशिर गया फिर भी सहमे हो

कहा बसंती हवा रह गयी.क्या दिन आये नहीं फाग के

जीवन की इन कलिकाओ में
मेरे मन की आशाओं मे

कब पराग भर पावोगे तुम ,शिशिर-समीरण से बच करके

अधर मेरे अतृप्त बडे हैं
खाली सब मधुकोष पड़े हैं

कौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के

vikram

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