सभी को नव वर्ष की ह्रार्दिक शुभकामनायें
vikram
सोमवार, 31 दिसंबर 2007
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007
जब हम कुछ दिन बाद ............
जब हम कुछ दिन बाद मिले थे
मेरी प्रतीक्षा मे तुम रत थे
नयन तेरे कितने विह्वल थे
एक-दूजे को देख हमारे मन, मे कितने दीप जले थे
मै आया जब पास तुम्हारे
कम्पित तन-मन हुये हमारे
अपलक तक नयनो से मुझको ,तुमने कितने प्रश्न किये थे
क्षण भर का एकांत देख कर
वक्ष-स्थल से मेरे लग कर
तेरी उर धड़कन ने मुझसे जीवन के प्रति-क्षण मागे थे
स्वरचित.............................विक्रम
मेरी प्रतीक्षा मे तुम रत थे
नयन तेरे कितने विह्वल थे
एक-दूजे को देख हमारे मन, मे कितने दीप जले थे
मै आया जब पास तुम्हारे
कम्पित तन-मन हुये हमारे
अपलक तक नयनो से मुझको ,तुमने कितने प्रश्न किये थे
क्षण भर का एकांत देख कर
वक्ष-स्थल से मेरे लग कर
तेरी उर धड़कन ने मुझसे जीवन के प्रति-क्षण मागे थे
स्वरचित.............................विक्रम
बुधवार, 26 दिसंबर 2007
आज अधरो............
आज अधरो पर अधर रख
मधुभरी
यह मौन सी शौगात मैने पा लिया है
कल ह्र्दय मे
उस पथिक सी थी विकलता
राह जिसको न मिली हो साझ तक मे
द्वार मे दस्तक लगाने को खडी हो
ले निशा फिर
मौत का जैसे निमन्त्रण
उन पलो मे
सजग प्रहरी सा तुम्हारा आगमन
क्या कहू मै'
वक्त थोडा
शब्द कम है
आज नयनो मे नयन का प्यार रख
मदभरी
यह प्रीत की पहचान मैने पा लिया है
स्वरचित...............................विक्रम
मधुभरी
यह मौन सी शौगात मैने पा लिया है
कल ह्र्दय मे
उस पथिक सी थी विकलता
राह जिसको न मिली हो साझ तक मे
द्वार मे दस्तक लगाने को खडी हो
ले निशा फिर
मौत का जैसे निमन्त्रण
उन पलो मे
सजग प्रहरी सा तुम्हारा आगमन
क्या कहू मै'
वक्त थोडा
शब्द कम है
आज नयनो मे नयन का प्यार रख
मदभरी
यह प्रीत की पहचान मैने पा लिया है
स्वरचित...............................विक्रम
मै किसको.....................
मै किसको अब यह बुलाऊँ
टूटे तरू पतों के जैसा
मूक पड़ा मै अविचल कैसा
अपने ही हाथो से घायल,हो बैठा यह किसे बताऊँ
मेरे मौंन रुदन से होती
भंग निशा की यह नीरवता
सुन ताने प्रहरी उलूक के ,मै जी भर कर रो न पाऊँ
मेरा कौन यह जो आये
आ मेरे दुःख को बहलाये
खुद अपना प्रदेश कर निर्जन,क्यू अपनो की आस लगाऊँ
स्वरचित..................................................................vikram
टूटे तरू पतों के जैसा
मूक पड़ा मै अविचल कैसा
अपने ही हाथो से घायल,हो बैठा यह किसे बताऊँ
मेरे मौंन रुदन से होती
भंग निशा की यह नीरवता
सुन ताने प्रहरी उलूक के ,मै जी भर कर रो न पाऊँ
मेरा कौन यह जो आये
आ मेरे दुःख को बहलाये
खुद अपना प्रदेश कर निर्जन,क्यू अपनो की आस लगाऊँ
स्वरचित..................................................................vikram
शनिवार, 22 दिसंबर 2007
साथी...............
साथी शिथिल हुए पग मेरे
अर्थ हींन अज्ञात दिशा में
पथ विहीन हो शुष्क धारा में
सीमा-हीन तृषा रख उर में,मरू-थल के लेता था फेरे
निष्फल हुयी कामना मन की
रवि किरणों से स्वर्णिम रज की
धूलि-कणों में मैनें प्रतिदिन ,कंचन कण थे हेरे
रूठी मौन संगनी छाया
मेरे संग क्या उसने पाया
तम ने उसकी परवशता के ,बन्धन काटे सारे
स्वरचित.......................................................vikram
अर्थ हींन अज्ञात दिशा में
पथ विहीन हो शुष्क धारा में
सीमा-हीन तृषा रख उर में,मरू-थल के लेता था फेरे
निष्फल हुयी कामना मन की
रवि किरणों से स्वर्णिम रज की
धूलि-कणों में मैनें प्रतिदिन ,कंचन कण थे हेरे
रूठी मौन संगनी छाया
मेरे संग क्या उसने पाया
तम ने उसकी परवशता के ,बन्धन काटे सारे
स्वरचित.......................................................vikram
हमने कितना.......
हमने कितना प्यार किया था
.
अर्ध्द -रात्रि में तुम थीं मैं था
मदमाता तेरा यौवन था
चिर-भूखे भुजपाशो में बंध, अधरों का रसपान किया था
ध्येय प्रणय-संसर्ग मेरा था
हृदय तुम्हारा कुछ सकुचा था
फिर भी कर स्वीकार इसे तुम ,तन मन मुझपे वार दिया था
थकित बदन चुपचाप पड़े थे
मरू-थल में सावन बरसे थे
हम दोनो ने एक दूजे को ,प्यारा सा उपहार दिया था
स्वरचित.
..............................vikram.
पंक्षी क्या...............
पंक्षी क्या पर थके तुम्हारे
थे नीले अम्बर के राही
सबल-सलिल सुख दुःख के ग्राही
वायु वेग से सहम गए क्यूं ,सबल पंख ये आज तुम्हारे
उत्पीडन, निंदा के डर से
या मन मलिन विसर्जित कल से
किस कुंठा से ग्रसित हो गये,सुर शोभित ये कंठ तुम्हारे
आ बीते कल को झुठला दे
जीवन को मिल नई दिशा दे
क्यूं अतीत से घिरे हुए हो,आज चलो तुम साथ हमारे
स्वरचित..................................विक्रम
थे नीले अम्बर के राही
सबल-सलिल सुख दुःख के ग्राही
वायु वेग से सहम गए क्यूं ,सबल पंख ये आज तुम्हारे
उत्पीडन, निंदा के डर से
या मन मलिन विसर्जित कल से
किस कुंठा से ग्रसित हो गये,सुर शोभित ये कंठ तुम्हारे
आ बीते कल को झुठला दे
जीवन को मिल नई दिशा दे
क्यूं अतीत से घिरे हुए हो,आज चलो तुम साथ हमारे
स्वरचित..................................विक्रम
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007
कितनी खुशियां......
कितनी खुशियाँ कितने ही गम जीवन में, संजोया
कुछ यादों की खातिर मैं तो ,नही रात भर सोया
पल भर का था साथ, बनी पर लंबी एक कहानी
अंजाना वह कौन सदा करता मुझसे मनमानी
पाने की चाहत मे मैंने , खुद को कितना खोया
कुछ यादों ...................................................
पहचानीं सी दस्तक भी लगती कितनी अंजनी
जाने-अनजानें हर रिश्ते होते हैं बेमानीं
अंक भरी खुशियाँ जब खोयीं , मैं कितना था रोया
कुछ यादों ..........................................................
दर्द भरे एहसासों में , होती मृदुता पहचानीं
खुशियाँ भी सौदाई पन की होतीं हैं दीवानी
पल -भर मे खो गया यहां सब , दर्द नही ये खोया
कुछ यादों की खातिर मैं तो , नहीं रात भर सोया
स्वरचित
................vikram.
कुछ यादों की खातिर मैं तो ,नही रात भर सोया
पल भर का था साथ, बनी पर लंबी एक कहानी
अंजाना वह कौन सदा करता मुझसे मनमानी
पाने की चाहत मे मैंने , खुद को कितना खोया
कुछ यादों ...................................................
पहचानीं सी दस्तक भी लगती कितनी अंजनी
जाने-अनजानें हर रिश्ते होते हैं बेमानीं
अंक भरी खुशियाँ जब खोयीं , मैं कितना था रोया
कुछ यादों ..........................................................
दर्द भरे एहसासों में , होती मृदुता पहचानीं
खुशियाँ भी सौदाई पन की होतीं हैं दीवानी
पल -भर मे खो गया यहां सब , दर्द नही ये खोया
कुछ यादों की खातिर मैं तो , नहीं रात भर सोया
स्वरचित
................vikram.
आज कई .......................
आज कई रत -जगे हो गये
नीड़ नयन के ख्वाब हो गये
रिश्तो से अनुराग खो गये
चांद-चकोरी के किस्से भी, शब्दों के व्यापार हो
शब्द वही पर अर्थ खो गये
राग-रागनी व्यर्थ हो गये
जीवन की आपा-धापी में, हम अपनी पहचान खो गये
हम कितने अनजान हो गये
अनजाने मेहमान हो गये
घूंघट की चौखट में ,लम्पट नजरों के ही मान हो गये
svarachit.................................vikram
नीड़ नयन के ख्वाब हो गये
रिश्तो से अनुराग खो गये
चांद-चकोरी के किस्से भी, शब्दों के व्यापार हो
शब्द वही पर अर्थ खो गये
राग-रागनी व्यर्थ हो गये
जीवन की आपा-धापी में, हम अपनी पहचान खो गये
हम कितने अनजान हो गये
अनजाने मेहमान हो गये
घूंघट की चौखट में ,लम्पट नजरों के ही मान हो गये
svarachit.................................vikram
विहान...........
साथी दूर विहान हो रहा
रवि रजनी का कर आलिंगन
अधरों को दे क्षण भर बन्धन
कर पूरी लालसा प्रणय की, मंद-मंद मृदु हास कर रहा
अपना सब कुछ आज लुटा कर
तृप्ति हुयी यौवन सुख पाकर
शरमाई रजनी से रवि फिर, मिलने का मनुहार कर रहा
रजनी पार क्षितिज के जाती
आखों से आंसू छलकाती
झरते आंसू पोछ किरण से, दूर देश रवि आज जा रहा
{ स्वरचित} .........................vikram
रवि रजनी का कर आलिंगन
अधरों को दे क्षण भर बन्धन
कर पूरी लालसा प्रणय की, मंद-मंद मृदु हास कर रहा
अपना सब कुछ आज लुटा कर
तृप्ति हुयी यौवन सुख पाकर
शरमाई रजनी से रवि फिर, मिलने का मनुहार कर रहा
रजनी पार क्षितिज के जाती
आखों से आंसू छलकाती
झरते आंसू पोछ किरण से, दूर देश रवि आज जा रहा
{ स्वरचित} .........................vikram
साथी .................
साथी बैठो कुछ मत बोलो
करने दो उर का अभिन्दन
अधरों का लेने दो चुम्बन
मेरी सासों की आहट पा, नयन द्वार हौले से खोलो
सही मूक नयनों की भाषा
पर कह जाती हर अभिलाषा
आज मुझे पढ़ने दो इनको, लाज भारी लाली मत धोलो
सच कहना है आज निशा का
अधरों पे दो भार अधर का
तरू पातों से कम्पित तन पर , तुम मेरा अधिकार माग लो
[स्वरचित] vikram
करने दो उर का अभिन्दन
अधरों का लेने दो चुम्बन
मेरी सासों की आहट पा, नयन द्वार हौले से खोलो
सही मूक नयनों की भाषा
पर कह जाती हर अभिलाषा
आज मुझे पढ़ने दो इनको, लाज भारी लाली मत धोलो
सच कहना है आज निशा का
अधरों पे दो भार अधर का
तरू पातों से कम्पित तन पर , तुम मेरा अधिकार माग लो
[स्वरचित] vikram
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