साथी दूर विहान हो रहा
रवि रजनी का कर आलिंगन
अधरों को दे क्षण भर बन्धन
कर पूरी लालसा प्रणय की, मंद-मंद मृदु हास कर रहा
अपना सब कुछ आज लुटा कर
तृप्ति हुयी यौवन सुख पाकर
शरमाई रजनी से रवि फिर, मिलने का मनुहार कर रहा
रजनी पार क्षितिज के जाती
आखों से आंसू छलकाती
झरते आंसू पोछ किरण से, दूर देश रवि आज जा रहा
{ स्वरचित} .........................vikram
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1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया सराहनीय
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