अर्ध्द -रात्रि में तुम थीं मैं था
मदमाता तेरा यौवन था
चिर-भूखे भुजपाशो में बंध, अधरों का रसपान किया था
ध्येय प्रणय-संसर्ग मेरा था
हृदय तुम्हारा कुछ सकुचा था
फिर भी कर स्वीकार इसे तुम ,तन मन मुझपे वार दिया था
थकित बदन चुपचाप पड़े थे
मरू-थल में सावन बरसे थे
हम दोनो ने एक दूजे को ,प्यारा सा उपहार दिया था
स्वरचित.
..............................vikram.
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