शनिवार, 22 दिसंबर 2007

हमने कितना.......

हमने कितना प्यार किया था

अर्ध्द -रात्रि में तुम थीं मैं था
मदमाता तेरा यौवन था

चिर-भूखे भुजपाशो में बंध, अधरों का रसपान किया था

ध्येय प्रणय-संसर्ग मेरा था
हृदय तुम्हारा कुछ सकुचा था

फिर भी कर स्वीकार इसे तुम ,तन मन मुझपे वार दिया था

थकित बदन चुपचाप पड़े थे
मरू-थल में सावन बरसे थे

हम दोनो ने एक दूजे को ,प्यारा सा उपहार दिया था

स्वरचित.

..............................vikram
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