रविवार, 20 जुलाई 2008

आज फिर कुछ खो रहा हूँ ..


आज फिर कुछ खो रहा हूँ

करुण तम में है विलोपित
हास्य से हो काल कवलित

अधर मे हो सुप्त, सपनो से विछुड कर सो रहा हूँ

नग्न जीवन है, प्रदर्शित
काल के हाथों विनिर्मित

टूटते हर खंड में ,चेहरा मै अपना पा रहा हूँ

आज से है कल हताहत
अब कहां जाऊँ तथागत

नीर से मै नीड का निर्माण करके रो रहा हूँ


विक्रम

1 टिप्पणी:

समयचक्र ने कहा…

नीर से मै नीड का
निर्माण करके रो रहा हूँ.

bahut sundar rachana