जब हम कुछ दिन बाद मिले थे
मेरी प्रतीक्षा मे तुम रत थे
नयन तेरे कितने विह्वल थे
एक-दूजे को देख हमारे मन, मे कितने दीप जले थे
मै आया जब पास तुम्हारे
कम्पित तन-मन हुये हमारे
अपलक तक नयनो से मुझको ,तुमने कितने प्रश्न किये थे
क्षण भर का एकांत देख कर
वक्ष-स्थल से मेरे लग कर
तेरी उर धड़कन ने मुझसे जीवन के प्रति-क्षण मागे थे
स्वरचित.............................विक्रम
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1 टिप्पणी:
sundar...
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