साथी बैठो कुछ मत बोलो
करने दो उर का अभिन्दन
अधरों का लेने दो चुम्बन
मेरी सासों की आहट पा, नयन द्वार हौले से खोलो
सही मूक नयनों की भाषा
पर कह जाती हर अभिलाषा
आज मुझे पढ़ने दो इनको, लाज भारी लाली मत धोलो
सच कहना है आज निशा का
अधरों पे दो भार अधर का
तरू पातों से कम्पित तन पर , तुम मेरा अधिकार माग लो
[स्वरचित] vikram
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1 टिप्पणी:
्बहुत ही सुन्दर गीत है।पढ कर आनंद आ गया। बधाई स्वीकारें।
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