लम्हे दर लम्हे जीवन में हालात बदलते रहते हैं
खारे जल वाले नयनों में, जज्बात पिघलते रहते हैं
पैहम थोडा जीने से मिले,हम खुद से इतना पूछ सके
पल दो पल की इन राहों में, हम क्यूँ सौदाई बनते हैं
शोलों की तपिस रख कर के भी, दिल कैसे इतना सर्द हुआ
उनके आने से भी कोई, तुफान नहीं अब उठते हैं
इतना उनसे कहना था मेरा,हम जामे-मोहब्बत पीते हैं
पीने से तोबा कर बैठे, मय-खाने से भी डरते हैं
उनकी चाहत में न जाने,कैसे इतना मशरूफ हुये
मेरी हालत में सुनते हैं, वो भी अफसाने लिखते हैं
विक्रम
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1 टिप्पणी:
dil itna kaise sard hua,unke anne se bhi koi toofan nahi uthathe,bahut khub.
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