शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

जीवन का यह सच भी देखा

जीवन का यह सच भी देखा


उत्तर नहीं प्रश्न इतने हैं


वृक्ष एक पर साख कई हैं


अनचाहे हालातों से भी, हाथ मिलाते सबको देखा


जीवन का यह सच भी देखा


दाता की वापिका हैं गहरी


काल-प्रबल हैं उसका प्रहरी


लघु-अंजलि में भर लेने की ,चाहत में जग को मैं देखा


जीवन का यह सच भी देखा


जब असत्य का तम गहराता


स्वप्निल छल से जग भ्ररमाता


सबल मुखरता को भी उस क्षण ,मौंन साधते मैने देखा


जीवन का यह सच भी देखा



विक्रम


2 टिप्‍पणियां:

Manish Kumar ने कहा…

जब असत्य का तम गहराता
स्वप्निल छल से जग भरमाया
सबल मुखरता को भी उस क्षण ,मौंन साधते मैने देखा
जीवन का यह सच भी देखा


अच्छी लगी ये पंक्तियाँ !

बेनामी ने कहा…

bahut sundar rachana hai,jeevan ke har pehlu ke satya asatya ka napatula kehti,badhai.