रविवार, 6 अप्रैल 2008

तिमिर बहुत गहरा होता हैं

तिमिर बहुत गहरा होता है

रात चाद जब नभ मे खोता
तारो की झुरुमुट मे सोता

मेरी भी बाहो मे कोई,अनजाना सा भय होताहै

यादो के जब दीप जलाता

उतना ही है तम गहराता


छुप गोदी मे मॆ सो जाता ,शून्य नही देखो आता है

कही नीद की मदिरा पाता
पी उसको हर आश भुलाता

रक्त नयन की जल धारा को, जग कैसे कविता कहता है

विक्रम

2 टिप्‍पणियां:

Alpana Verma ने कहा…

यादो के जब दीप जलाता


उतना ही है तम गहराता


sundar bhaav hain

बेनामी ने कहा…

रात चाद जब नभ मे खोता
तारो की झुरुमुट मे सोता

मेरी भी बाहो मे कोई,अनजाना सा भय होताहै

यादो के जब दीप जलाता


उतना ही है तम गहराता


bahut bahut sundar bhav hai.