तिमिर बहुत गहरा होता है
रात चाद जब नभ मे खोता
तारो की झुरुमुट मे सोता
मेरी भी बाहो मे कोई,अनजाना सा भय होताहै
यादो के जब दीप जलाता
छुप गोदी मे मॆ सो जाता ,शून्य नही देखो आता है
कही नीद की मदिरा पाता
पी उसको हर आश भुलाता
रक्त नयन की जल धारा को, जग कैसे कविता कहता है
विक्रम
2 टिप्पणियां:
यादो के जब दीप जलाता
उतना ही है तम गहराता
sundar bhaav hain
रात चाद जब नभ मे खोता
तारो की झुरुमुट मे सोता
मेरी भी बाहो मे कोई,अनजाना सा भय होताहै
यादो के जब दीप जलाता
उतना ही है तम गहराता
bahut bahut sundar bhav hai.
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