मेरे हालात पर भी न इतना रहम खाओ तुम
कि मुझको शर्म आजाये, दो आँसू भी गिराने में
ये गुलशन मैने सीचा था,गुलों को तुमने लूटा हैं
इन काटों को तो रहने दो,मेरा दामन चुभाने को
ये गिरना गिर के उठना, फिर से चलना खूब सीखा हैं
नजर में अपनों के गिरना,नहीं बर्दाश्त कर पाये
ये माना मैं हूँ जज्बाती,मगर इतना नहीं यारा
की सच और सब्र के दामन से,अपने को जुदा कर लूँ
vikram
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