सच नही कोई परिंदा, जाल मे फँस जाएगा
कर हलाले-पाक उसको चाक कर खा जाएगा
रख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जाएगा
देखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा
दिल्लगी में दिलकशी हो , दिल कहाँ फिर जाएगा
प्यार और नफरत में यारा , फर्क क्या रह जाएगा
प्यार अपने इम्तिहाँ के , दौर से बच जायेगा
वक़्त की तारीक मे , कैसे पढा वह जायेगा
vikram
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1 टिप्पणी:
रख जुबाँ फिर भी यहाँ तू , बे-जुबाँ हो जाएगा
देखकर शमसीर यदि तू , सच नहीं कह पायेगा
wah kya baat kahi,kuch alag hi andaz hai,sundar.
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