गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

हम आप की राहों में .................

हम आप की राहों में,दिन रात भटकते हैं
क्यूँ आप नहीं मेरे , जज्बात समझते हैं
आखों की छुवन दिल में,सिहरन सी जगा जायें
लवरेज वो लब तेरे, मदहोश बना जायें
पहलू में कभी आवो ,हम भी तो तरसते हैं
हम.............................................................
हम दिल की कहीं दिल से,कहने हैं यहाँ आये
यूँ आप न संग-दिल हों, जायें तो कहाँ जायें
चाहत भरी नजरों को,गुल ही तो समझते हैं
हम..........................................................
हर एक इबादत में ,बस नाम तेरा आये
मजमून भले कुछ हों,पैगाम तेरा लाये
कुदरत का करिश्मा हों,हम भी तो समझते हैं
हम.........................................................
विक्रम


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