मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

दर्द को दिल में उतर जाने दो

दर्द को दिल में उतर जाने दो
आज उनको भी कहर ढाने दो

रात हर चाँद से होती नहीं मसरुफे-सुखन
स्याह रंगो के नजारे भी नजर आने दो

एक अनजानी सी तनहाई, सदा रहती है
आज महफिल में उसे नज्म कोई गाने दो

जिनने दरियाओं के मंजर ही नहीं देखे हैं
उन सफीनो पे-भी अफसोस जरा करने दो

कोई वादे को निभा दे यहाँ ऐसा तो नहीं
सर्द वादों को कोई राह नई चुनने दो

चंद कुछ राज यहाँ यूँ ही दफन होते नहीं
आज अपना ही जनाजा मुझे ले जाने दो


विक्रम

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

दर्द को दिल में उतर जाने दो
आज उनको भी कहर ढाने दो

रात हर चाँद से होती नहीं मसरुफे-सुखन
स्याह रंगो के नजारे भी नजर आने दो

kavita ki shuruwat hi itni jabardast hai wah,kavita to lajawab,obe of the best poems from ur kalam.