बुधवार, 30 अप्रैल 2008

साथी बैठो कुछ मत बोलो


साथी बैठो कुछ मत बोलो

करने दो उर का अभिन्दन
अधरों का लेने दो चुम्बन


मेरी सासों की आहट पा, नयन द्वार हौले से खोलो

सही मूक नयनों की भाषा
पर कह जाती हर अभिलाषा

आज मुझे पढ़ने दो इनको, लाज भारी लाली मत धोलो

सच कहना है आज निशा का
अधरों पे दो भार अधर का

तरू पातों से कम्पित तन पर , तुम मेरा अधिकार माग लो

vikram

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