मंगलवार, 1 जनवरी 2008

थोड़ी सी मधु पी ...........

साथी थोड़ी सी मधु पी है

निर्मम था ,वह एकाकीपन
जिह्वा हीन कंठ सा क्रंदन

आयें रुदन श्रवन कर मेरे, उर-मधु से पीडा हर ली है

नयन स्वप्न को,शून्य हृदय को
मेरे जीवन के हर पल को

चिर अभाव हर तुमने प्रेयसि, सतरंगी आशा निधि दी है

नव कालियां पा उपवन महके
प्रणय स्वप्न नयनों में झलके

तेरे पलक संपुटो की, मदिरा उर प्याले में भर ली है

स्वरचित................................vikram

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