मंगलवार, 29 जनवरी 2008

दर्द को दिल...........

दर्द को दिल में बसाना है मुझे
जिन्दगी को फिर से पाना है मुझे

इक मुकम्मल जिन्दगी के वास्ते
ज़ख्म अपनों से ही पाना है मुझे

रुँ-बरुँ हों कर न जिनसे मिल सके
अब उन्हें ख्वाबो में लाना है मुझे

ए-हिनां के रंग भी फीके लगे
खूनें-दिल ऐसा बहाना है मुझे

जज्बये-दिल की कशिश को हर सहर
है बना शबनम भिगोना अब उन्हें

फिर क़यामत तक न देखे ये जमीं
आशिकी में इस कदर मिटना मुझे

है बड़ी मासूम प्यारी सी मेरी ये जिन्दगी
बस किसी की याद में इसको रुलाना है मुझे

vikram

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

bahut khub kaha

kisi ke yaad mein itna nahi roya karte
kisi ke gum mein itna nahi khoya karte
ke khud ki sudh budh na rahe.