शुक्रवार, 4 जनवरी 2008

साथी याद तुम्हारी....................

साथी याद तुम्हारी आये

सिंदूरी सन्धा जब आये
ले मुझको अतीत में जायें

रूक सूनी राहों में तेरा,वह बतियाना भुला न पाए


मधु-मय थीं कितनी वो रातें
मृदुल बहुत थीं तेरी बाते

अंक भरा था तुमने मुझको .फैलाकर नि:सीम भुजायें

प्राची में उषा जब आये
जानें क्यूँ मुझको न भाये

बिछुड़े हम ऐसे ही पल में, नयना थे अपने भर आये

[स्वरचित] vikram

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