साथी याद तुम्हारी आये
सिंदूरी सन्धा जब आये
ले मुझको अतीत में जायें
रूक सूनी राहों में तेरा,वह बतियाना भुला न पाए
मधु-मय थीं कितनी वो रातें
मृदुल बहुत थीं तेरी बाते
अंक भरा था तुमने मुझको .फैलाकर नि:सीम भुजायें
प्राची में उषा जब आये
जानें क्यूँ मुझको न भाये
बिछुड़े हम ऐसे ही पल में, नयना थे अपने भर आये
[स्वरचित] vikram
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