जीवन का यह सच भी देखा
उत्तर नहीं प्रश्न इतने हैं
वृक्ष एक पर साख कई हैं
अनचाहे हालातों से भी, हाथ मिलाते सबको देखा
जीवन का यह सच भी देखा
दाता की वापिका हैं गहरी
काल-प्रबल हैं उसका प्रहरी
लघु-अंजलि में भर लेने की ,चाहत में जग को मैं देखा
जीवन का यह सच भी देखा
जब असत्य का तम गहराता
स्वप्निल छल से जग भ्ररमाता
सबल मुखरता को भी उस क्षण ,मौंन साधते मैने देखा
जीवन का यह सच भी देखा
विक्रम
2 टिप्पणियां:
जब असत्य का तम गहराता
स्वप्निल छल से जग भरमाया
सबल मुखरता को भी उस क्षण ,मौंन साधते मैने देखा
जीवन का यह सच भी देखा
अच्छी लगी ये पंक्तियाँ !
bahut sundar rachana hai,jeevan ke har pehlu ke satya asatya ka napatula kehti,badhai.
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