हे प्रभात तेरा अभिनंदन
किरण भोर की, निकल क्षितिज से
उलझी ओस कणों के तन से
फूलों की क्यारी तब उसको, देती अपना मौंन निमंत्रण
भौरों के स्वर हुये गुंजरित
खग-शावक भी हुए प्रफुल्लित
श्यामा भी अपनी तानों से,करती जैसे रवि का पूजन
ज्योति-दान नव पल्लव पाया
तम की नष्ट हुयी हैं काया
गोदी में गूजी किलकारी, करती हैं तेरा ही वंदन
विक्रम
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
subhah ka khubsurat varnan
एक टिप्पणी भेजें