उन्मादित सपनों के छल से
आहत था झुठलाये सच से
तृष्णा की परछाई से,उसको मैने लड़ते देखा
मैने अपने कल को देखा
वर्त्तमान से जो कुछ पाया
उससे लगता था घबडाया
बीते कल की ओर पलट कर ,जाने की कोशिश में देखा
मैने अपने कल को देखा
जीवन-मरण संधि रेखा पर
राह न पाये खोज यहाँ पर
उसको अपनी दुर्बलता पर,फूट-फूट कर रोते देखा
मैने अपने कल को देखा
vikram
1 टिप्पणी:
sundar saral rachana,kash hum bhi apne kal ko dekh pate.
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