गुरुवार, 24 जनवरी 2008

रात के.....................

रात के अन्धेरे में
मै
अपने दर्द को
हौले-हौले थपथपा के सहला के
सुलाने का प्रयास करता रहा
और तेरी यादें
किसी नटखट बच्चे की तरह
आ-आकर
न उसे सोने देती,न मुझे सुलाने देती
मै चिडचिडाता हूँ,बिगडता हूँ
पर सच तो यह है
मै
अपने आप को,यह समझा नहीं पाता हूं
कि मेरा दर्द और तेरी यादें
अलग-अलग नहीं एक है
तू नहीं तो क्या
मेरे पास
हमारे टूटे घरौदे के
कुछ अवशेष
अभी भी शेष हैं

[स्वरचित] विक्रम

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

dard aur yadoon ka rishta dil se hi tho hai.bhavna se bhare shabdh.khubsurat alfaz.wah.

Shastri JC Philip ने कहा…

सशकत. भावनाओ को बहुत अच्छी तरह से उकेरा गया है.

"न उसे सोने देती,न मुझे सुलाने देती"

वाह !