दर्द को दिल में बसाना है मुझे
जिन्दगी को फिर से पाना है मुझे
इक मुकम्मल जिन्दगी के वास्ते
ज़ख्म अपनों से ही पाना है मुझे
रुँ-बरुँ हों कर न जिनसे मिल सके
अब उन्हें ख्वाबो में लाना है मुझे
ए-हिनां के रंग भी फीके लगे
खूनें-दिल ऐसा बहाना है मुझे
जज्बये-दिल की कशिश को हर सहर
है बना शबनम भिगोना अब उन्हें
फिर क़यामत तक न देखे ये जमीं
आशिकी में इस कदर मिटना मुझे
है बड़ी मासूम प्यारी सी मेरी ये जिन्दगी
बस किसी की याद में इसको रुलाना है मुझे
vikram
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1 टिप्पणी:
bahut khub kaha
kisi ke yaad mein itna nahi roya karte
kisi ke gum mein itna nahi khoya karte
ke khud ki sudh budh na rahe.
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