गुरुवार, 24 जनवरी 2008

मैं अंधेरो ....................

मैं अधेरों में घिरा, पर दिल में इक राहत सी है
जो शमां मैने जलाई ,वह अभी महफिल में है

गम भी हस कर झेलना ,फितरत में दिल के है शुमार
आशनाई सी मुझे ,होने लगी है इनसे यार

महाफिलो में चुप ही रहने की मेरी आदत सी है
मैं....................................................................

एक दर पर कब रुकी है,आज तक कोई बहार
गर्दिशो में हूँ घिरा ,कब तक करे वो इन्तजार

जिन्दगी को मौसमों के दौर की आदत सी है
मैं....................................................................

अपना दामन तो छुडा कर जानां है आसां यहां
गुजरे लम्हों से निकल कर कोई जा सकता कहाँ

कल से कल को जोड़ना भी ,आज की आदत सी है
मैं.....................................................................


बिक्रम

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

apna daman chudakar jana aasan yahan,gujre lamho se jaa sakta koi kaha bahut sundar geet hai.