रविवार, 24 फ़रवरी 2008

साथी तुम बन आये मेरे

साथी तुम बन आये मेरे

जीवन काल-प्रबल की क्रीडा

अंत-हीन थी मेरी पीडा

आकर मेरे ह्रदय पटल पर ,आशाओं के चित्र उकेरे

साथी तुम बन आये मेरे

महा-मौंन यह भंग हुआ हैं

मुखर स्वरों में गान हुआ हैं

आज मेरे हर रोम-रोम में ,खुशिया बैठी डाले डेरे

साथी तुम बन आये मेरे

उर-उपवन मेरा महका हैं

हर पल अब मधुमास बना हैं

आज मेरे नयनो ने देखे , सपने मधुर सुनहरे

साथी तुम बन आये मेरे

vikram

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

khushiyan baithi dale dere,bahut mithi kavita hai.

Manish Kumar ने कहा…

सहज सुंदर प्रेम अभिव्यक्ति

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बह्त सुन्दर!!