साथी तुम बन आये मेरे
जीवन काल-प्रबल की क्रीडा
अंत-हीन थी मेरी पीडा
आकर मेरे ह्रदय पटल पर ,आशाओं के चित्र उकेरे
साथी तुम बन आये मेरे
महा-मौंन यह भंग हुआ हैं
मुखर स्वरों में गान हुआ हैं
आज मेरे हर रोम-रोम में ,खुशिया बैठी डाले डेरे
साथी तुम बन आये मेरे
उर-उपवन मेरा महका हैं
हर पल अब मधुमास बना हैं
आज मेरे नयनो ने देखे , सपने मधुर सुनहरे
साथी तुम बन आये मेरे
vikram
3 टिप्पणियां:
khushiyan baithi dale dere,bahut mithi kavita hai.
सहज सुंदर प्रेम अभिव्यक्ति
बह्त सुन्दर!!
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