शनिवार, 1 मार्च 2008

कवि सुन तू मेरे मन के द्वन्द

कवि सुन तू मेरे मन के द्वन्द

इक कली आज मुरझाई

उस पर बहार न आई

फेका उसको पथ-रज में

रच दे उस पे भी एक छंद

कवि ...........................

मधु-ॠतु था जीवन मेरा

हर पल था नया सवेरा

वे प्रेम पुष्प ले आये

बाजे थे मेरे मन मृदंग


कवि ........................

मन मीत मेरा क्या रूठा

हर चित्र अधूरा छूटा

न माने मृदु मनुहारो से

क्यू वीणा के स्वर हुये मंद

कवि ...................................

विक्रम

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

kyun veena swar huye mand,bahut dundar