बुधवार, 19 मार्च 2008

ख्वाब सी यह जिन्दगी ,इस जिन्दगी से क्याँ गिला

ख्वाब सी यह जिन्दगी ,इस जिन्दगी से क्याँ गिला
क्या मिला रोया यहाँ , और जब हँसा तो क्याँ मिला

जिदगी चलती कहाँ हैं , हसरतों के रास्ते
मौत से इसके यहाँ, कितने करीबी वास्ते
अब यहाँ शिकवा करें क्यूँ ,अपनी ही भूलो से हम
इक अजब से दास्तां लिख दी हैं हमने बा कलम

रो रहें हैं आशियां ,ऐसा दिया उनको शिला
ख्वाब ................................................

महफिलों की याद , तन्हाई में आती हैं सदा
प्यार का एहसास होता, होते हैं जब दिल जुदा
अपनी आवारगी पे रोती हैं, यहाँ देखो फिजा
बरना क्या इस बागवां को , जीत लेती यह खिजां
जिन्दगी को बाट टुकडो , मे सदा खुद को छला
ख्वाब..................................................................

vikram

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

महफिलों की याद , तन्हाई में आती हैं सदा
प्यार का एहसास होता, होते हैं जब दिल जुदा
अपनी आवारगी पे रोती हैं, यहाँ देखो फिजा
बरना क्या इस बागवां को , जीत लेती यह खिजां
kya kasish hai in panktiyon ki,bahut hi apratim,holi ki aapko sah parivar badhai.