मृग चितवन में बंधा बंधा सा
पास नहीं हों मेरे फिर भी ,नयन तुम्हे ही ढूँढ़ रहें हैं
जाने कौन दिशा में तेरी पायल के स्वर गूँज रहें हैं
जागी भूली यादें तेरी
पर मन मेरा डरा-डरा सा
कही पपीहे के स्वर सुनके,जाग पड़े न दर्द हमारे
सच्चाई से मन डरता हैं, पर वह बैठी बाँह पसारे
दो पल मधुर मिलन के
आज लगे तन थका-थका सा
कैसे कहें कौन हों मेरे , सारे सपने टूट गये हें
प्रेम भरे रिश्तो के बन्धन,जाने कैसे छूट गये हैं
कितनी मिली खुशी थी मुझको
पर सब लगता मरा-मरा सा
विक्रम
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