रविवार, 9 मार्च 2008

नहीं क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

नही क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

आशा के विस्तृत प्रदेश में

उत्साहित ह्रद भरा जोश में

जीवन समर सरल हों जायें , यदि प्रिय धर लो नेह हमारे

नहीं क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

उर भय ग्रसित न प्रणय हमारे

फिर क्यूँ चिंतित नयन तुम्हारे

कंचन बदन कनक मद लेकर, आई हों मन द्वार हमारे

नहीं क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

चिर आपेक्षित मिलन हमारा

काल-चक्र भी हमसे हारा

जग जीवन के सभी नियंत्रण, तोड़ बढे पग आज हमारे

नहीं क्षणिक प्रिय ध्येय हमारे

vikram

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

आशा के विस्तृत प्रदेश में

उत्साहित ह्रद भरा जोश में

जीवन समर सरल हों जायें , यदि प्रिय धर लो नेह हमारे
bahut sundar