बुधवार, 12 मार्च 2008

थे जब तक दिल मे तुम मेरे...............

थे जब तक दिल मे तुम मेरे, न दर्दो के ये साये थे
गुलों में खार होते हैं, न तब तक जान पाये थे


मुझे न चाहने का गम , नही इतना सताता हॆ
रकीबों से गले लगना,यही पल-पल रुलाता हॆ


तडफ कर हम इधर रोये, उधर तुम मुस्कुराये थे
गुलो में खार होते हैं, न तब तक जान पाये थे


कोई शिकवा नही फिर भी, मुझे इतना ही कहना हॆ
दुआ के हाथ कातिल थे ,यही गम मुझको सहना हॆ


गमों से इश्क करने की , नही हम सोच पाये थे
गुलो में खार होते हैं , न तब तक जान पाये थे


विक्रम





2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

कोई शिकवा नही फिर भी, मुझे इतना ही कहना हॆ
दुआ के हाथ कातिल थे ,यही गम मुझको सहना हॆ

गमों से इश्क करने की , नही हम सोच पाये थे
गुलो में खार होते हैं , न तब तक जान पाये थे
bahut hi sundar,har nagma ek alag pehchan hota hai,bahut khubsurat.

Asha Joglekar ने कहा…

सिंग साहब बहुत खूबसुरत गज़ल है ।