थे जब तक दिल मे तुम मेरे, न दर्दो के ये साये थे
गुलों में खार होते हैं, न तब तक जान पाये थे
मुझे न चाहने का गम , नही इतना सताता हॆ
रकीबों से गले लगना,यही पल-पल रुलाता हॆ
तडफ कर हम इधर रोये, उधर तुम मुस्कुराये थे
गुलो में खार होते हैं, न तब तक जान पाये थे
कोई शिकवा नही फिर भी, मुझे इतना ही कहना हॆ
दुआ के हाथ कातिल थे ,यही गम मुझको सहना हॆ
गमों से इश्क करने की , नही हम सोच पाये थे
गुलो में खार होते हैं , न तब तक जान पाये थे
विक्रम
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2 टिप्पणियां:
कोई शिकवा नही फिर भी, मुझे इतना ही कहना हॆ
दुआ के हाथ कातिल थे ,यही गम मुझको सहना हॆ
गमों से इश्क करने की , नही हम सोच पाये थे
गुलो में खार होते हैं , न तब तक जान पाये थे
bahut hi sundar,har nagma ek alag pehchan hota hai,bahut khubsurat.
सिंग साहब बहुत खूबसुरत गज़ल है ।
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