शनिवार, 8 मार्च 2008

जीवन की जब शाम यहां पर आयेगी

जीवन की जब शाम यहां पर आयेगी

आ कितना आराम मुझे दी जायेगी

तन्हाई से लड़ते- लड़ते थक जायेगें

जीवन का यह बोझ नहीं ढो पायेगें

ऐसे में वो चुपके से आ जायेगी

आ...........................................

कोई शिकवे कोई न गिले रह जायेगें

बीते कल के अपने बन सपने आयेगें

इन सपनों से वो दूर मुझे ले जायेगी

आ..............................................

बैरन निदिया भी रोज मुझे तरसाती हैं

रह कर के भी पास नहीं ये आती हैं

उसके आते ही आकर मुझे सुलायेगी

आ......................................................

vikram

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बैरन निदिया भी रोज मुझे तरसाती हैं

रह कर के भी पास नहीं ये आती हैं

उसके आते ही आकर मुझे सुलायेगी
simply awesome