रविवार, 9 मार्च 2008

एक मुट्ठी दायरे में ..................

एक मुट्ठी दायरे में ,हैं जो सिमटी जिंदगानी

ख्वाब हैं कितने बड़े,कितनी बड़ी इसकी कहानी

हैं कहीं ममता की मूरत, तो कहीं नफरत की आंधी

रूप हैं कितने ही इसके, जा नहीं सकती ये जानी

तोड़ती हर दायरे, आती हैं इसपे जब जवानी

एक .........................................................

हैं वफा और बेवफा भी ,प्रीत भी हैं पीर भी

ये कहीं मजनू बने तो, ये कहीं पे हीर भी

ये कबीरा ये फकीरा, ये बने मीरा दिवानी

एक .....................................................

हैं कहाँ इसका ठिकाना, आज तक कोई न जाना

पीर संतो ने भी इसको, बस खुदा का नूर माना
हैं सुखनवर के लिये,उल्फत भरी कोई कहानी

एक ...........................................................

विक्रम

2 टिप्‍पणियां:

पारुल "पुखराज" ने कहा…

bahut khuub....ये कबीरा ये फकीरा, ये बने मीरा दिवानी....sundar bhaav

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया!!

हैं कहाँ इसका ठिकाना, आज तक कोई न जाना

पीर संतो ने भी इसको, बस खुदा का नूर माना
हैं सुखनवर के लिये,उल्फत भरी कोई कहानी

एक ...........................................................