शनिवार, 8 मार्च 2008

चलो आज कुछ नया करें हम

चलो आज कुछ नया करे हम

इसी पुराने तन को धर कर
सडे घुने से मन को लेकर

जीवन की अन्तिम बेला मे,आज नया प्रस्थान करे हम

चलो आज कुछ नया करे हम

वही शशंकित आशाये धर
घने पराये पन से डर कर

सासों की इस पगडन्डी से,हट कर कोई राह चुने हम

चलो आज कुछ नया करे हम

तृप्ति कहाँ होती मन गागर
सुख के चाह रही वो सागर

छोड़ इसे इस ही पनघट पर,मरुथल में विश्राम करें हम

चलो आज कुछ नया करें हम

vikram

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

तृप्ति कहाँ होती मन गागर
सुख के चाह रही वो सागर

छोड़ इसे इस ही पनघट पर,मरुथल में विश्राम करें हम

sahi kaha bahut sundar