चलो आज कुछ नया करे हम
इसी पुराने तन को धर कर
सडे घुने से मन को लेकर
जीवन की अन्तिम बेला मे,आज नया प्रस्थान करे हम
चलो आज कुछ नया करे हम
वही शशंकित आशाये धर
घने पराये पन से डर कर
सासों की इस पगडन्डी से,हट कर कोई राह चुने हम
चलो आज कुछ नया करे हम
तृप्ति कहाँ होती मन गागर
सुख के चाह रही वो सागर
छोड़ इसे इस ही पनघट पर,मरुथल में विश्राम करें हम
चलो आज कुछ नया करें हम
vikram
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1 टिप्पणी:
तृप्ति कहाँ होती मन गागर
सुख के चाह रही वो सागर
छोड़ इसे इस ही पनघट पर,मरुथल में विश्राम करें हम
sahi kaha bahut sundar
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