कवि सुन तू मेरे मन के द्वन्द
इक कली आज मुरझाई
उस पर बहार न आई
फेका उसको पथ-रज में
रच दे उस पे भी एक छंद
कवि ...........................
मधु-ॠतु था जीवन मेरा
हर पल था नया सवेरा
वे प्रेम पुष्प ले आये
बाजे थे मेरे मन मृदंग
कवि ........................
हर चित्र अधूरा छूटा
न माने मृदु मनुहारो से
क्यू वीणा के स्वर हुये मंद
कवि ...................................
विक्रम
1 टिप्पणी:
kyun veena swar huye mand,bahut dundar
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