बस हम वफाये-इश्क में,मिटते चले गये
और वो जफाये-राह में, चलते चले गये
मैं न नसीब उनका, कभी बन सका यहाँ
वे ही नसीबे-गम मुझे देकर चले गये
इस इश्के मय-कशी के जुनू में मिला ही क्याँ
लवरेज वो पैमाने भी,छूटे छलक गये
अब तो दुआये बोल भी मिलते नहीं यहाँ
कुछ ऐसी बद्दुआ मुझे देकर चले गये
उल्फत में उनके यारो फंना भी करू तो क्या
दामन से मेरे दिल को जुदा कर चले गये
विक्रम
2 टिप्पणियां:
janewale vapas nahi aaya karte,unko kabhi bulaya bhi nahi karte,aakhari do panktiyan kavita mein jaan daal rahi hai,khas kar fanawali pankti
bahut khuub....kehtey rahen
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